तीखी कलम से

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

क्या गिला है रुक्मिणी से

2122   2122
तुम  मिली  थी  सादगी से ।
याद   है   चेहरा  तभी  से ।।

जिक्र आया  फिर उसी का ।
जब   गया  उसकी गली  से ।।

बादलों   का  यूं  घुमड़ना ।
है  जमीं  की  तिश्नगी  से ।।

यूं    मुकद्दर   आजमाइश ।
कर गई फ़ितरत ख़ुशी से ।।

गीत    भंवरा    गुनगुनाया ।
आ गई  खुशबू  कली  से ।।

मैकशोंका   क्या   भरोसा ।
वास्ता   बस   मैकशी   से ।।

सिर्फ    राधा    ढ़ूढ़ते   हो ।
क्या गिला है रुक्मिणी  से ।।

जोड़ता  है  रोज  मकसद ।
आदमी   को  आदमी  से ।।

ख्वाब   यूं   टूटे   न   मेरा ।
डर  गया  हूँ   रोशनी   से ।।

वह  हवा  की  बेरुखी  थी ।
क्यों शिकायत ओढ़नी से ।।

चुन लिया उल्फ़त को मैंने ।
इक   तुम्हारी  पेशगी   से ।।

लौट   आया  है   तबस्सुम ।
फिर तेरी दरिया  दिली से ।।

          नवीन मणि त्रिपाठी

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