तीखी कलम से

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

ग़ज़ल -- मेरी ताबूत पे लिक्खा है ये नारा किसने

2122 1122 1122 22
मुद्दतों  बाद  तुझे  हद   से   गुज़ारा   किसने ।
कर  दिया  हुस्न को आँखों से इशारा किसने ।।

खास मकसद को  लिए  लोग  यहां मिलते हैं ।
फिर  किया आज मुहब्बत से किनारा किसने ।।

आज  महबूब  के  आने  की  खबर  है शायद ।
उलझे  गेसू   थे  कई   बार   संवारा    किसने ।।

ऐ जमीं दिल की निशानी को  सलामत  रखना ।
मेरी   ताबूत  पे   लिक्खा  है  ये  नारा  किसने ।।

हो गया था मैं फ़ना  वस्ल  की ख्वाहिश  लेकर ।
चैन  आया  ही  नहीं  दिल  से  पुकारा  किसने ।।

चोट गहरी  थी  मगर  तुझसे  शिकायत  इतनी ।
जख़्म  सीने  का मिरे   और   उभारा  किसने ।।

आइना  तोड़   तो  डाला   है  बड़ी  शिद्दत  में ।
तेरे  चेहरे  पे   किया  आज  नज़ारा    किसने ।।

इश्क़  छुपता  है कहाँ लाख  छुपा  कर  देखो ।
चन्द  रातों   में  तुझे  खूब   निखारा  किसने ।।

भूल  जाने   का  तमाशा  है  तेरी  फ़ितरत  में ।
अक्स  मेरा  था  वो कागज़ पे उतारा किसने ।।

फैसले सोच  समझकर  तो किया करआलिम ।
कह दिया तुम से अभी तक हूँ कुँआरा किसने ।।

टूट जाते  हैं  भरम  सच  से  अदावत  करके ।
ढूढ़  पाया  है  यहां  दिन  में  सितारा  किसने ।।

डूब   जाता   है   मुकम्मल  वो   नज़र  में  तेरी ।
गम ए  उल्फत को  दिया खूब  सहारा  किसने ।।

           -- नवीन मणि त्रिपाठी

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