तीखी कलम से

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

ग़ज़ल --बस नज़र क्या मिली , हो गया आपका

212 212 212 212 
याद  आता  रहा  सिलसिला  आपका ।
बस नज़र क्या मिली हो गया आपका ।।

आपकी   सादगी   यूं  असर  कर  गई ।
रेत  पर   नाम  मैंने   लिखा  आपका ।।

इश्क़  की  जाने  कैसी  वो  तहरीर  थी ।
रातभर  इक वही  खत  पढ़ा  आपका ।।

है सलामत  अभी तक वो खुशबू  यहां ।
गुल किताबों से मुझको मिला आपका ।।

वक्त  की भीड़  में खो  गया इस  कदर ।
पूछता   रह   गया  बस  पता  आपका ।।

इक  ख़ता  जो  हुई  भूल  पाया   कहाँ ।
यूं  अदा   से   बहुत   रूठना   आपका ।।

बात  शब्  भर  चली हिज्र तक आ गई ।
फर्ज  था वस्ल  तक  जोड़ना  आपका ।।

टूट  कर   सब   बिखरते   गए  हौसले ।
था ज़माना  गज़ब  था  खुदा  आपका ।।

जख़्म गहरा हुआ ,हो गया फिर  सितम ।
इस  तरह  हाल  फिर  पूछना  आपका ।।

होश    खोने    गया   मैकदे    में   तभी ।
दे गया   कोई   फिर  वास्ता   आपका ।।

         - नवीन मणि त्रिपाठी

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