तीखी कलम से

मंगलवार, 28 मार्च 2017

गज़ल -चैन आया है हर दफ़ा तुझसे

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कैसे  कह  दूँ  मैं  हूँ  ज़ुदा  तुझसे ।
चैन  आया   है   हर  दफ़ा  तुझसे ।।

इक  सुलगती   हुई   सी  खामोशी ।
इक फ़साना  लिखा मिला  तुझसे ।।

वो   इशारा   था  आँख   का  तेरे ।
दिल था पागल छला गया तुझसे ।।

भूल   जाती   मेरा  तसव्वुर   भी ।
क्यूँ  हुई  रात  भर  दुआ  तुझसे ।।

बेखुदी  में  जो  इश्क  कर  बैठा ।
उम्र भर  बस  वही जला  तुझसे ।।

कर  लूँ  कैसे  यकीन  वादों   पर ।
कोई   वादा  कहाँ  निभा  तुझसे ।।

कुछ  रक़ीबों  से   गुफ्तगूं   करके ।
तीर   वाज़िब  नहीं  चला  तुझसे ।।

रूठ  जाने  की   है  अदा  ज़ालिम ।
और  हासिल  ही क्या हुआ तुझसे ।।

कत्ल करने का  सिलसिला  जारी ।
आशिको  ने सितम  कहा  तुझसे ।।

खूब   इल्जाम   लग  रहा   लेकिन ।
चाँद   पूछा   हरिक   रज़ा  तुझसे ।।

उस से छुपना भी  गैर  मुमकिन है ।
ख्वाब  में  रोज  मिल  रहा  तुझसे ।।

       -- नवीन मणि त्रिपाठी

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