तीखी कलम से

रविवार, 16 अप्रैल 2017

ग़ज़ल -- हो सके मुस्कुरा दीजिये

212 212 212 
चाहतों   का  सिला   दीजिये ।
हो   सके   मुस्कुरा    दीजिये ।।

टूट     जाए   न्   ये   जिंदगी।
हौसला   कुछ  बढा   दीजिये।।

गफलतें   हो   चुकी  हैं  बहुत ।
रुख़   से  पर्दा  हटा    दीजिये ।।

देखिए    हाल    बेहाल     क्यूँ ।
आप  ही   कुछ   दवा  दीजिये ।।

बेवफा  कह   दिया   क्यो उसे ।
राज   है  क्या   बता   दीजिये ।।

लूट  कर  ले  गई  सब   नजर ।
यह रपट  भी  लिखा  दीजिये ।।

टूटकर  वह   बिखर  ही   गई ।
जाइये   घर    बसा    दीजिये ।।

है    जरूरी    मुलाकात   भी ।
रास्ता    इक   बना   दीजिये ।।

दीजिये  जाम   उसको   मगर ।
थोड़ा    पानी   मिला  दीजिये ।।

जो  हुई   थी  ग़ज़ल  याद  में ।
आज फिर वह  सुना दीजिये ।।

वह  बहुत  कह  चुका  है बुरा ।
आइना  अब  दिखा  दीजिये ।।

उम्र   कातिल   हुई   आपकी ।
तीर    सारे    चला   दीजिये ।।

नींद   आती   नहीं   रात  भर ।
ख़त   पुराने   जला   दीजिये ।।

          --नवीन मणि त्रिपाठी

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