तीखी कलम से

रविवार, 16 अप्रैल 2017

ग़ज़ल -मैकदों के पास आकर देखिये

2122 2122 212 

मैकदों  के   पास  आकर   देखिये ।
तिश्नगी  थोड़ी   बढ़ाकर   देखिये ।।

वह नई उल्फ़त या नागन है  कोई ।
गौर से  चिलमन  हटाकर देखिये ।।

सर  फरोशी  की  तमन्ना  है  अगर ।
बेवफा  से   दिल लगाकर देखिये ।।

आपकी जुल्फें सवंर  जायेगी  खुद ।
आशिकों  के  पास  जाकर देखिये ।।

आस्तीनों    में   सपोले    हैं    छुपे ।
हाथ  दुश्मन  से  मिलाकर  देखिये ।।

जल न् जाऊँ मैं कहीं फिर इश्क़ में ।               इस तरह  मत  मुस्कुराकर देखिये ।।
                       
होश  खोने   का   इरादा   है  अगर ।
ज़ाम साकी को  पिलाकर  देखिये ।।

दाग लग  जाते हैं दामन  पर  यहां ।
कुछ  तमाशा  दूर   जाकर  देखिये ।।

फिर नशेमन पर गिरी हैं बिजलियाँ ।
बादलों  को  तिलमिलाकर देखिये ।।

हो रहा वह  हुस्न भी  नीलाम  अब ।
बोलियां  ऊंची   लगाकर  देखिये ।।

चाहते   गर  लाश  जिन्दा  देखना ।
रात  कोठों  पर   बिताकर  देखिये ।।

            --नवीन मणि त्रिपठी

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