तीखी कलम से

सोमवार, 29 मई 2017

ग़ज़ल --जहां मतलब परस्ती हो वहां उल्फ़त नहीं अच्छी

1222 1222 1222 1222 
यहां  की  नाज़नीनो  में पली  हसरत  नहीं  अच्छी ।
जहाँ मतलब  परस्ती हो  वहाँ  उल्फत नहीं अच्छी ।।

बड़ा   खतरा   मुहबत  से  ये   हिंदुस्तान   है  यारों ।
हसीनों के चमन में अब कोई ग़फ़लत नहीं अच्छी ।।

हुए  बरबाद   हम   तेरी  निगाहों   की  शरारत  से ।
मेरी बर्बादियों  पर  फिर तेरी  रहमत  नहीं अच्छी ।।

गुजर   जातीं   हैं  ये   रातें  कई  मजबूरियां   लेकर ।
सनम  से  लोग कहते  हैं  मेरी सोहबत नहीं अच्छी ।।

बड़ी कमसिन  अदाएं हैं  नज़र को  फेरना  मुश्किल ।
है मौसम आशिकाना भी मगर किस्मत नहीं अच्छी ।।

बड़े  जालिम  इरादे   हैं  ये  कातिल   हुस्न  वाले  हैं ।
इन्हें  सर  पर  चढ़ाने   की  नई  आदत  नहीं अच्छी ।।

ज़रूरत  पर  जो  दौलत  काम आने से  मुकर जाए ।
हिफ़ाज़त  में  रखी  ऐसी  कोई  दौलत  नहीं अच्छी ।।

बनावट  का  तबस्सुम  हो  दिलों  में खार हो जिंदा  ।
मियां!मक़सद के चाहत में हुई खिदमत नहीं अच्छी ।।

सुकूँ  गर  चाहिए  तो सिर्फ  बेगम की  खुशामद कर ।
किसी  से  इश्क  कर लाई गई  आफ़त नहीं अच्छी ।।

कहा  तू  मान  ले  मेरा   या   फिर  कोई  तरीका  दे ।
ग़ज़ल  के  वास्ते  हमसे  तेरी   हुज़्ज़त  नही अच्छी ।।

अगर  मंजूर   तुझको  है  तो  मेरा  हक़  मुझे  दे  दे ।
कभी  खैरात  में  बटती  कोई  इज्जत नहीं अच्छी ।।

हमारे   पास  जो   भी   था   तुम्हारे   वास्ते   ही  था।
लगी अपनों की जेबों पर तेरी हिकमत नहीं अच्छी ।।

              -- नवीन मणि त्रिपाठी

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