तीखी कलम से

सोमवार, 29 मई 2017

हसरतें तब हलाल करती हैं

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ताकतें    पायमाल   करती   हैं ।
ख्वाहिशें तब हलाल करती हैं ।।

खा  रहे  वे  हराम  की  दौलत ।
रोटियाँ  तक मलाल  करती हैं ।।

मर  रहे  भूंख  से   यहां   अदने।
कुर्सियां क्या खयाल  करती  हैं ।।

हाल   कैसे   तुझे   बताएं   हम ।
चुप्पियां  ही  सवाल  करती  हैं ।।

वह  नमाज़ी  भी  हो  गया तेरा ।
तेरी आंखें  कमाल  करती   हैं ।।

आज मुश्किल है यार से मिलना ।
वस्ल  में   अंतराल   करती   हैं ।।

उस का चेहरा  बुझा बुझा सा है ।
तोहमतें कब  निहाल  करतीं  हैं ।।

हैं कहाँ  वे वफ़ा के काबिलअब ।
बे  अदब  का मज़ाल करती  हैं ।।

यह ज़माने  का  है असर   देखो ।
वे   दुपट्टा   रुमाल   करती   हैं ।।

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