तीखी कलम से

सोमवार, 26 जून 2017

ग़ज़ल 50 शेर के साथ

-------ग़ज़ल -------52 शेर के साथ
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बात   तुम  भी  खरी  नही करते ।
काम  कोई  सही   नही    करते ।

चोट दिल पर लगी है फिर उनके।
काम  ये  मजहबी  नहीं   करते ।।

जब से अफसर बना दिया कोटा ।
बात  अच्छी  भली  नहीं   करते ।।

दोस्तों   की   किसी  तरक्की  में ।
यूँ   मुसीबत  खड़ी  नहीं करते ।।

जिंदगी  पर  यकीन  है  जिनको ।             वो  कभी खुदकुशी  नहीं  करते ।।

कुछ  तो  खुन्नस  बनी  रही होगी ।
बेसबब     बेरुखी   नहीं   करते ।।

पेंग  गर  प्यार   की  बढ़ानी    है ।
प्यार   में   हड़बड़ी  नही  करते ।।

है मुहब्बत  का आसरा  जिनको ।
हुस्न  की  रहबरी   नहीं    करते ।।

सिर्फ मिसरे से काम क्या चलता ।
टिप्पणी कुछ  कभी  नही करते ।।

थी    गरीबी  की  दास्तां    होगी ।
काम  गन्दा  सभी  नहीं   करते ।।

हमको मालूम राज की कीमत ।
बेवफाई    कभी   नही   करते ।।

जिनको मंजिलकी फिक्रहै काफी ।
वक़्त  से   दुश्मनी  नहीं    करते ।।

है पता उन्को  कैफियत अपनी ।
वो   इधर  तर्जनी  नहीं  करते ।।

ये  मुहब्बत  है खेल  मत मुझसे ।
हम  कभी  दिल्लगी नहीं करते ।

रहनुमाई   चली   गई   जब  से ।
बात  तब से  बड़ी  नहीं  करते ।।

वोट  पाकर  वो खो गया वरना ।
लोग  बे  इज्जती नहीं  करते ।।

है मुहब्बत  का आसरा  जिनको ।
हुस्न   की  रहबरी  नहीं   करते ।।

चोट दिल पर लगी है फिर उनके ।
काम  ये  मजहबी  नहीं   करते ।।

पेंग  गर  प्यार   की  बढ़ानी   है ।
प्यार  में  हड़बड़ी   नही    करते ।।

सिर्फ मिसरे से काम  क्या चलता ।
टिप्पणी  कुछ  नई   नही  करते ।।

वो  निशाने  पे   तीर  था   वरना ।
वो  कभी  खलबली  नहीं  करते ।।

बैठ  जाये  कोई  मेरे   सर    पर ।
छूट   इतनी  खुली  नहीं   करते ।।

सर  फ़रोसी  की  है  तमन्ना  अब ।
वार  में  बुजदिली   नहीँ    करते ।।

कीमतें    वे    वसूलते   हैं   जो।
माल  अपना  दही  नहीं   करते ।।

शर्त  है  जिस्म  दिल लगाने  की ।
लोग  क्या ज्यादती  नहीं  करते ।।

गर   किसानों  से  वास्ता  रखते ।
मुल्क  में  भुखमरी  नहीँ  करते ।।

कुछ  तबीयत मचल  गयी  होगी ।
हम  कभी  आशिकी नही  करते ।।

मुफ़्लिशी दौर से जो है वाकिफ़ ।
वो   हमारी  हसी   नहीँ   करते ।।

फंस न्  जाएं  ये पाँव  ही अपने ।
हम  जमीं  दलदली  नहीं  करते ।।

खास शातिर हैं इश्क के मुजरिम ।
हाथ  में  हथकड़ी  नहीं   करते ।।

है  छुपाना अगर  ये धन  काला ।
बिस्तरे  मखमली  नहीं  करते ।।

खर्च का बोझ बढ़ गया जब से ।
बात अब रस भरी नही  करते ।।

सर्जिकल  हो गई वहां  जब  से ।
मूछ   अपनी  तनी  नहीं  करते ।।

ध्यान  देतीं  नहीं  अगर   मैडम ।
आज  हम  शायरी  नहीं  करते ।।

मैं तो ठहरा हूँ इस तरह दिल मे ।
आप अब हाजिरी  नहीं  करते ।।

देश   द्रोही   है  कन्हैया  उनका ।
दुश्मनों   की  कमी  नहीं  करते ।।

फिर हुए हैं  जवान  क्यो जख्मी।
लोग क्या  मुखबिरी नहीं  करते ?

नेकियाँ    बेहिसाब   हैं  उनकी ।
हम  कभी  भी बदी  नहीं करते ।।

क्यों  उमीदें  लगा  के  बैठे  हो ।
अब्र   ये  चांदनी   नहीं   करते ।।

जब  से  लूटा  है लाल  कुर्ते ने ।
रेलवे   में   कुली   नहीं  करते ।।

बाम   पंथी  बिके   हुए  शायद ।
जुर्म  पर  सनसनी  नहीं  करते ।।

जब भी  मारा है  उसने आतंकी ।
क्यों वे जाहिर खुशी नहीं करते ।।

मैं भी  आज़ाद हो  गया होता ।
तेरे  शिकवे   बरी  नहीं करते ।।

जब से दौलत का  हाल जाना है ।
आँख  वो  शरबती  नहीं  करते ।।

कोई राधा नहीं दिखे तब तक ।
होठ  पर  बाँसुरी  नहीं  करते ।।

काफ़िया वो   बना  रहे   काफी ।
ध्यान   हर्फे   रवी   नहीं   करते ।।

गर कलम जारही है मंजिल तक ।
रोक कर  मन  दुखी नहीं करते ।।

काम   ऐसा   बचा   नहीं   कोई ।
अब जिसे आदमी  नहीं  करते ।।

मिल गया जब से है उन्हें वोहदा ।
बात  भी  लाजिमी  नहीं  करते ।।

शुद्ध  पण्डित का है लहू  रग   में ।
काम  मे  जाहिली  नहीं  करते ।।

हो   गई    हाफ    सेंचुरी   शायद।
बात  हम   बेतुकी   नहीं    करते ।।

            - नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित 
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