तीखी कलम से

सोमवार, 26 जून 2017

ग़ज़ल ---हाथ काफी मले गए हर सू

-----ग़ज़ल -----

*2122  1212  22*

 हाथ   काफी  मले  गए  हर  सू ।
कुछ   सयाने  गए  छले  हर सू ।।

बात    बोली   गई    दीवारों  से ।
खूब   चर्चे  सुने  गए    हर  सू ।।

आग का कुछ पता न् चल पाया ।
 बस धुंआ ही धुंआ उठे हर सू ।।

इक तरन्नुम में पढ़ ग़ज़ल मेरी ।
ये  ज़माना  तुझे  सुने  हर सू ।।

जुर्म  की हर निशानियाँ  कहतीं ।
अश्क़ यूं ही नहीं  बहे  हर  सू ।।

वह   मुहब्बत  में  डूबती  होगी ।
ढूढ़  दरिया  में  बुलबुले  हर सू ।।

इश्क का कुछ असर उन्हें भी  है ।
रह  रहे   हैं  कटे   कटे  हर  सू ।।

मुस्कुरा  कर  वो  कत्ल करते  हैं ।
लोग  मिलते  कहाँ  भले  हर सू ।।

सर पे बांधे कफ़न  मिला है वह ।
अब   इरादे  बड़े  बड़े   हर   सू ।।

कुछ   तरक्की   नही  हुई  उनसे ।
सिर्फ  मुद्दे  बहुत  उठे  हर सू ।।

आज   उसने  नकाब   फेंका  है ।
देखिए आज  जलजले  हर  सू ।।

उनके आने की खबर है शायद ।
रंग   बिखरे   हरे  हरे  हर   सू ।।

प्यास देखी  गयी  नहीं   उनसे ।
अब्र आकर  बरस गए  हर सू ।।

कितनी भोली अदा में दिखती है ।                         चल रहे खूब सिलसिले  हर सू ।।

कुछ अदब का लिहाज है वरना ।                        उसके  चर्चे   बड़े   बुरे  हर  सू।।

बेबसी   पर  सवाल  मत   पूछो । 
लोग मुश्किल से तन ढके हर सू ।।

नज़नीनो  का  क्या  भरोसा  है ।               जब मिले  बेवफा मिले हर सू ।।

कितनी ज़ालिम निगाह है साकी ।           रोज आशिक  दिखे  नए हर सू ।।

रोजियाँ   वो  नहीं   बढ़ा   पाए ।
हो गए  खूब  मनचले   हर  सू ।।

होश आने का जिक्र  कौन करे ।
खुल रहे  रोज  मैकदे  हर  सू ।।

कुछ अंधेरा   नही  मिटा  पाए ।
दीप लाखों मगर  जले हर सू ।।

 रात मिलकर गई है  जब से वो ।
हो रहे  तब  से  रतजगे  हर सू ।।

 कोई  पढ़ता  नही  सुख़न  मेरे ।
क्या सुख़नवर नहीं  बचे हर सू ।।

 अब कलम बन्द कर दिया हमने ।
हौसले   हैं   बुझे  बुझे   हर  सू ।।

          --- नवीन मणि त्रिपाठी

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