तीखी कलम से

सोमवार, 26 जून 2017

ग़ज़ल

2122  2122  2122  212

मैं तेरे अहले चमन का सिलसिला हो जाऊंगा।
बेवफा मुझको कहो मत मैं अता हो जाऊंगा ।।

कुछ तेरी फ़ितरत है ऐसी कुछ मेरी आवारगी ।
वस्ल  के आने  पे तेरा मयकदा हो  जाऊंगा ।।

घुघरूओं  की  ये  सदायें छू  रही हैं रूह  को ।
मैं तेरी महफ़िल में आकर बाखुदा हो जाऊंगा।।

अब  मेरे  हालात  पर नज़रे  इनायत कीजिये ।
आपकी इस जिंदगी का तज्रिबा हो जाऊंगा ।।

बज़्म  में   लाखों   दीवाने  आ  गए  हैं आपके ।
कौन  कहता आपका मै  रहनुमा  हो जाऊंगा ।।

कुछ नज़र में  तिश्नगी  है  हुस्न पर छाई बहार ।
अब  हुकूमत आपकी है मैं फ़ना हो जाऊंगा ।।

ये   नज़ाक़त  ये अदाएं  ये  तुम्हारी  शोखियाँ ।
देख  लेना फिर मुझे जब आईना हो जाऊंगा ।।

खिड़कियों से झांककर देखाकरो मतइस तरह।
दिल बहुत नाजुक है मेरा मैं फिदा हो जाऊंगा।।

लोग  पूछेंगे   तुम्हारे   दिल के जब भी  रास्ते  ।
क्या ठिकाना है तुम्हारा वह पता  हो जाऊंगा ।।

शह्र  में  चर्चा  बहुत है  हर जुबाँ  पर है सवाल ।
लगरहा सबकी ज़ेहन का फ़लसफ़ा हो जाऊंगा।

है  मुहब्बत आज  भी  जिंदा  मेरे  अरमान में ।
क्या खबर थी मैं तुम्हारी इक ख़ता होजाऊंगा।

             नवीन मणि त्रिपाठी
               कॉपी राइट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें