तीखी कलम से

सोमवार, 26 जून 2017

ग़ज़ल

1222 1222 122
उसे  सर  पर   बिठाया  जा  रहा है ।
किसी  पे  जुर्म  ढाया  जा  रहा  है ।।

उन्हें  मालूम   है  अपनी   तरक्की ।
जहर  को  आजमाया  जा रहा है ।।

चलेगा किस तरह गर्दन पे  ख़ंजर ।
तरीका सब सिखाया  जा  रहा है ।।

जो नफरत में चलाता रोज  पत्थर ।
उसे   अपना  बताया जा  रहा  है ।।

जो चारा  खा  चुके  हैं जानवर  का ।
उन्हें   नेता  बुलाया   जा   रहा   है ।।

वो   गायें  काटते  हैं  वोट  खातिर ।
नया  मजहब  चलाया  जा  रहा है ।।

जे एन यू में है  गद्दारी  का  आलम ।
हमारा  घर   मिटाया  जा  रहा   है ।।

न  जाने  क्या  बिगाड़ा  सैनिकों  ने ।
मनोबल  फिर  गिराया जा रहा  है ।।

करोड़ो  लूट  कर  बोली  बहन जी ।
हमें   झूठा  फसाया  जा   रहा   है ।।

सियासत  हो  रही  है जातियों  पर ।
नया   कानून  लाया  जा  रहा   है ।।

सड़क तो बन चुकी कागज में देखो ।
हक़ीक़त  को  छुपाया जा  रहा  है ।।

सलाखों तक कहाँ जाते हैं मुजरिम ।
महज   पर्दा  उठाया  जा   रहा   है ।।

ये   मौसेरे  से  भाई  लग   रहे    हैं ।
बड़ा  रिश्ता  निभाया  जा   रहा  है ।।

            नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित 
               कॉपी राइट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें