तीखी कलम से

शनिवार, 3 जून 2017

ग़ज़ल --कुछ लोग मुहब्बत को आबाद नहीं करते

वज़्न    -   221 1222 221 1222
पिजरे  से  परिंदे  को  आज़ाद  नहीं   करते ।
कुछ लोग मुहब्बत को  आबाद  नहीं  करते ।।

फ़ितरत है पतंगों  की  शम्मा  पे  मचलने की ।
ऐसे  जुनूं  पे  आलिम  इमदाद  नहीं  करते ।।

वह दर्द मिटाने  का  वादा  किया  था  वरना ।
रह रह  के मुकद्दर  को हम  याद नही  करते ।।

ज़ालिमकी अदालत में सचपर गिरी है बिजली
मालूम   अगर   होता  फरियाद  नही  करते ।।

वो साथ निभाएंगे कहना है बहुत मुश्किल ।
वो  वक्त  कभी  हम  पर बर्बाद नहीं करते ।।

हसरत  ही  मिटा बैठे कुछ लोग ज़माने में ।
खुशियों की तमन्ना  को  ईज़ाद नहीं करते ।।

दरिया  का  समंदर  से  मिलने का इरादा है ।
बेबाक   भरोसे  पर   सम्वाद  नहीं   करते ।।

देखेंगे  नहीं   मुझको  गर  राज  पता  होता ।
महफ़िल की बड़ी  लम्बी  तादाद नहीं करते ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें