तीखी कलम से

शनिवार, 3 जून 2017

कहा किसने तेरा परचम नहीं है

1222 1222 122 
अना  की बात में कुछ  दम  नहीं  है ।
कहा   किसने  तेरा  परचम नहीं  है ।।

मिलेंगी  कब  तलक  ये  स्याह रातें ।
तेरी  किस्मत  में क्या पूनम नही है ।।

अभी तक मुन्तजिर है आंख उसकी ।
वफ़ा  के नाम पर कुछ कम नहीं है ।।

चिरागे  इश्क़  पर  है  नाज़   उसको ।
उजाला  भी   कहीं  मध्यम  नहीं  है ।।

सजा    देंगे    हमे   ये    हुस्न  वाले ।
हमारे  हक़   का  ये  फोरम  नहीँ है ।।

तेरी  जुल्फों  की  मैं  तश्वीर रख लूँ।
मगर  मुद्दत से  इक अल्बम नही है ।।

मिटा  बैठा  है  वो  उल्फ़त में हस्ती ।
उसे   बर्बादियों   का   गम  नहीं  है ।।

अनासिर  से  मुकम्मल है बदन  वो ।
कहा  कसने   बदन  संगम  नहीं  है ।।

नहीं  है  वस्ल  का मौसम कहो मत ।
तुम्हारी   तिश्नगी   में   दम  नहीं   है ।।

सहर  को  मान लूँ  मैं सच  भी  कैसे ।
गुलों  पर  रात  की  शबनम  नहीं  है ।।

अना  के  साथ  मत  यूँ  पेश  आओ।
मेरी  ग़ज़लों  का  तू  उदगम नहीं है ।।

बहुत  मुमकिन  मुहब्बत  जीत  जाए ।
 छुपा    कोई   वहाँ   रुस्तम  नहीं   है ।।

है  गर   जज़्बा  तो  मेरे  पास  आओ ।
जिगर   तक   रास्ता   दुर्गम  नहीं  है ।।

किसी  का जख़्म  मत पूछा  करो  यूँ ।
तुम्हारे  पास  जब  मरहम   नहीं   है ।।

अजब  क़ातिल से  उसका  वास्ता  है ।
सजाये   मौत   पर   मातम  नही   है ।।

                 ----नवीन मणि त्रिपाठी

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