तीखी कलम से

शनिवार, 29 जुलाई 2017

ग़ज़ल ---बाकी अभी है और फ़ज़ीहत कहाँ कहाँ

221 2121 1221 212
लेंगे   हजार   बार   नसीहत   कहाँ  कहाँ ।
बाकी अभी है और  फ़जीहत कहाँ कहाँ ।।

चलना बहुत  सँभल  के ये  हिन्दोस्तान है ।
मिलती यहां सभी को हिदायत कहाँ कहाँ।।

मजहब कोई बड़ा है तो इंसानियत का है ।
पढ़ते  रहेंगे  आप  शरीअत  कहाँ  कहाँ ।।

वादा  किया  हुजूर  ने  बेशक  चुनाव  में ।
यह बात है अलग कि इनायत कहाँ कहाँ।।

बदलेंगे लोग ,सोच बदल दीजिये जनाब ।
रक्खेंगे आप इतनी  अदावत  कहाँ कहाँ ।।

ईमान   बेचता   है   यहाँ   आम   आदमी ।
करते   रहेंगे  आप   हुकूमत  कहाँ  कहाँ ।।

कैसे   रिहा  हुआ  है  यही  पूछते  हैं सब ।
होती  है पैरवी में किफ़ायत  कहाँ  कहाँ ।।

है देखना तो देखिए  मुफ़लिस की जिंदगी ।
मत देखिए हैं लोग  सलामत  कहाँ  कहाँ ।।

सहमें  हुए  हैं चोर  हकीकत  ये  जानकर ।
आएगी इक नज़र से कयामत कहाँ कहाँ ।।

हालात  देख  के वो  समझने लगे  हैं  सब ।
ये  ग़म कहाँ कहाँ  ये  मसर्रत कहाँ  कहाँ।।

चोरों  को   भी  तलाश  है  ईमानदार  की ।
ढूढा ज़मीर  में  है  सदाक़त  कहाँ  कहाँ ।।

           नवीन मणि त्रिपाठी 
         मौलिक अप्रकाशित

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मजहब कोई बड़ा है तो इंसानियत का है ।
    पढ़ते रहेंगे आप शरीअत कहाँ कहाँ ।।
    सच इंसानियत से बढाकर कुछ भी नहीं फिर भी लोग क्या क्या नहीं कर बैठते हैं

    बहुत सुन्दर गजल

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  3. सही मे इंसानियत से बड़ा कोई धर्म हो ही नही सकता
    "चोरों को भी तलाश है ,ईमानदारी की
    ढूंढा जमीर है ,सदाक़त कहाँ-कहाँ ,बहुत गहरी रचना

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  4. बहुत ही सुन्दर ! रचना का मर्म उससे भी गहरा ,प्रस्तुति शब्दों की उम्दा आभार ''एकलव्य''

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  5. हर एक शेर अलग अंदाज में ! बहुत बहुत खूबसूरत रचना !सादर ।

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  6. चोरों को भी तलाश है ईमानदार की ।
    ढूढा ज़मीर में है सदाक़त कहाँ कहाँ ।।
    बहुत बढ़िया।

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