तीखी कलम से

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

ग़ज़ल -बस रात भर की बात थी

2212 2212 2212 2212 

बस रात भर की बात थी , फिर भी रहा पहरा तेरा ।
ऐ  चाँद  तेरी  बज़्म  में  कायम  रहा  रुतबा  तेरा ।।

वो  तीरगी  जाती  रही  रोशन  लगी हर शब मुझे ।
मेरे तसव्वुर  में कभी जब  अक्स  ये  उभरा तेरा ।।

टूटा हुआ तारा था इक हँसता रहा क्यूँ  कहकशां ।
यूँ  ही  जमीं  से  देखता मैं  रह गया  लहज़ा तेरा ।।

देकर गई  है मुफ़लिसी ,कुछ  तज्रिबा भी कीमती ।
मुझको अभी तक याद है ,बख्शा हुआ सदक़ा तेरा।।

है  जिक्र  तेरे  हुस्न  का  ,बाकी  कोई  चर्चा  नहीं ।
है चार  सू  खुशबू  तेरी  छाया  रहा  जलवा  तेरा ।।

रानाइयों  के  फेर में  हम  भी  हरम  में  आ  गए ।
देखा  हया   के  वास्ते  गिरता  रहा  परदा   तेरा ।।

सारा  ज़माना हो  गया दुश्मन  मेरा इस बात  पर ।
कातिल  बनाकर  उम्र भर जारी रहा फ़तबा तेरा ।।

नज़रों की थी ग़फ़लत या फिर वह ख्वाब था मेरा कोई ।
महफ़िल  में चर्चा  है बहुत  आकर  चला .जाना तेरा ।।

मायूस    है    सारा   चमन   मायूस   दीवाने   हुए ।
जब  से  दुपट्टे  में  छिपा  है  चाँद  सा  चेहरा  तेरा ।।

खामोशियों  के बीच से उठने  लगे हैं कुछ सवाल ।
वो मिन्नतें  करता  गया पर दिल नहीं पिघला तेरा ।।

            नवीन मणि त्रिपाठी
           मौलिक अप्रकाशित 
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