तीखी कलम से

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

ग़ज़ल -कौन कैसा उड़ रहा देखा करो

2122  2122  212
इस तरह बे फिक्र मत  निकला  करो ।
कुछ ज़माने को भी अब समझा करो।।

है  मुहब्बत   से  सभी  की  दुश्मनी।
ज़ालिमों से मत कभी उलझा  करो ।।

फिर  सितारे  टूटकर  गिरते  मिले ।
आसमा पर भी नज़र  रक्खा करो ।।

कुछ   परिंदे   हो  गए   बेख़ौफ़  हैं ।
कौन  कैसा उड़  रहा  देखा   करो ।।

दाग  दामन  पर लगे  कितने  यहां ।
आइनो  से  भी  कभी  पूछा  करो ।।

वक्तपर अक्सर मुकर जाते हैं लोग ।
आदमी  की बात  को परखा करो ।।

याद रखना है अगर  उसका  सितम ।
दिल के पन्नों में सितम लिक्खा करो।।

लोग   पलकें   हैं   बिछाए   राह   में ।
बेसबब  यूँ   ही  नहीं   परदा   करो ।।

है  अगर  कुछ  भी  सुकूँ  से वास्ता ।
जुर्म   के  बाबत  नहीं   चर्चा  करो ।।

हम  यकीं  करने  लगेंगे  आप  पर ।
आप  मुद्दों  पर  कभी  ठहरा करो ।।

लुट  न  जाए यह खज़ाना हुस्न का ।
उम्र की  दहलीज  पर  पहरा  करो ।।

   नावीन मणि त्रिपाठी
      मौलिक अप्रकाशित

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