तीखी कलम से

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

दोहे

दोहे

कामी कुछ बाबा हुए कलयुग  हुआ असीम।
कुछ तो  आशाराम हैं,कुछ  हैं  राम  रहीम।।

हनीप्रीत  जोगन बनी ,अद्भुत उसकी  प्रीत ।
काम वासना बाँट कर,नित नित बदले रीत।।

राधे  माँ  के द्वार  पर, निशदिन  बरसे नेह ।
जाकी जैसी पोटली , ता  पर    तैसी  गेह ।।

कई  तपस्वी  ढूढते ,फूलों  का  मकरन्द ।
अब  रावण  के भेष में, मिलते नित्यानंद ।।

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