तीखी कलम से

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

ग़ज़ल

*221  1221  1221  122*

जबसे  खुली  ये आपकी  दूकान  है  बाबा ।
दौलत  पे नज़र आपकी  पहचान  है बाबा ।।

गर  होते  यहां  रोग  सभी  योग से  अच्छे ।
फिर क्यूँ दवा के नामका फरमान है बाबा ।।

काला है  ये मन आपका  काली  है  कमाई ।
महंगा हुआ क्यों आपका ये  ज्ञान है बाबा ।।

अनशन में दिखीआप के हर योगकी ताकत ।
कमजोर बहुत आपकी  ये  जान है  बाबा ।।

सलवार  पहन भाग गए  आप   समर   से ।
निर्दोष   मरे आपका   सम्मान   है   बाबा ।।

इस  राम रहीमा की भी  करतूत अजब है ।
अब  भेड़िया के भेष  में  शैतान  है  बाबा ।।

आशा  का  है  वो राम मगर  काम   बुरा है ।
अपने ही करम से अभी अनजान है बाबा ।।

आरोप  है  गुरुदेव की हत्या में है शामिल ।
कहता है  बड़े नाज़  से  इंशान  है  बाबा ।।

                    ---नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें