तीखी कलम से

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

ग़ज़ल - तिश्नगी फिर कयामत हुई

212 212 212
ज़ुल्फ़  में   जब   नज़ाकत   हुई ।
तिश्नगी     फिर   कयामत  हुई ।।

वक्त  की   कुछ   सियासत  हुई ।
आप   से   जो   मुहब्बत    हुई ।।

जिस  गली  से  गुजरते  हैं  वो ।
उस   गली   में   इबादत   हुई।।

मिल   गई  जो  नज़र   आपसे ।
आरजू    ये     सलामत    हुई ।।

है  अलग  हुस्न  कुछ  आपका ।
आप   ही   की  हुकूमत   हुई ।।

यूँ   संवरते    गए   आप   भी ।
जब  अदा  की   इनायत  हुई ।।

अब   चले  आइये  बज्म   में ।
आपकी  अब   जरूरत  हुई ।।

जाइये  रूठ  कर  मत  कहीं ।
आपसे   कब   अदावत  हुई ।।

है   तकाजा   यहां   उम्र   का ।
आईनों    की   हिदायत   हुई ।।

कुछ   अदाएं   मचलने  लगीं ।
आंख  से जब  हिमाकत हुई ।।

चल दिये तोड़कर  दिल  मेरा ।
कौन   सी  ये  शराफ़त   हुई ।।

जब   हुई   मैकसी  जश्न    में ।
मैकदों  तक   शिकायत  हुई ।।

टूटकर    हम    बिखरते   रहे ।
आप  से  कब   रियायत  हुई ।।

जीत  कर  आ  गए इश्क़  में ।
वो  जमीं  अब  रियासत   हुई ।।

         -- नवीन मणि त्रिपाठी

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