तीखी कलम से

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

ग़ज़ल - इस तरह से दिल लगाना बस करो

2122 2122 212
हरकतें  ये   आशिकाना   बस   करो ।
बेसबब   यूँ  मुस्कुराना   बस   करो ।।

फिक्र   किसको  है यहां  इंसान  की ।
फिर कोई  ताज़ा  बहाना , बस करो ।।

होश में  मिलते  कहाँ  मुद्दत  से  तुम।
इस तरह से  दिल  लगाना, बस करो ।।

बेवफा  की  हो चुकी  खातिर  बहुत ।
राह   में  पलकें  बिछाना, बस  करो ।।

घर  मे  कंगाली  का  आलम  देख कर ।
गैर पर सब कुछ  लुटाना ,बस  करो ।।

रंजिशों   से  कौन  जीता.   इश्क़    में।
हार कर अब तिलमिलाना, बस करो ।।

कर   गई     दीवानगी   घायल    उसे ।
वार   अपना   क़ातिलाना , बस करो।।

देख   ली   मेरी   लियाकत  जंग   में ।
रोज  मुझको  आजमाना, बस करो ।।

साफ़  कह  दो अब  नहीं  रिश्ता रहा।
जिंदगी भर  का  फ़साना ,बस  करो ।।

सच को सुनने का रखो तुम  हौसला ।
आइनों  से  मुहँ  छुपाना  बस  करो ।।

कुछ तुम्हारी गलतियां होंगी ज़रूर ।
बे   गुनाहों  पर   निशाना, बस  करो ।।

          ---नवीन मणि त्रिपाठी 
           मौलिक अप्रकाशित

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