तीखी कलम से

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

ग़ज़ल - बेबस पे नज़र से वार न कर

22112 22112 22112 22112
(सुखनवर अंतर राष्ट्रीय ग्रुप के द्वरा दी गई बह्र पर एक ग़ज़ल )

ये इश्क़ कहीं बदनाम न हो इतना तू  मेरा दीदार न कर ।
ऐ जाने वफ़ा ऐ जाने ज़िगर बेबस पे नज़र से वार न कर ।।

इन शोख अदाओं से न अभी इतरा के न चल लहरा के न चल
यह उम्र बड़ी कमसिन है सनम 
ख़ंजर पे अभी तू धार न कर ।।

हैं दफ़्न यहाँ पर राज़ कई इस कब्र पे लिक्खी बात तो पढ़ ।
अब वक्त गया अब उम्र ढली  अब और नया इजहार न कर ।।

चेहरे की लकीरों को जो पढ़ा तो राज हुआ मालूम मुझे ।                                           दिल मांग गया तुझसे है कोई यह बात अभी इनकार न कर  ।।

सब दर्द फ़साने बीत गए वो रात गई वो बात गई ।।                                  
लिक्खा था जो खत ऐ इश्क़ तुझे उस ख़त को मेरे अखबार न कर ।।

जज़्बात बहे अश्कों में यहां बेफिक्र तमाशा देख रहे ।
ये आह जला  सकती है तुझे लहजे को अभी खुद्दार न कर ।।

इनकार कभी इकरार कभी गफ़लत में गुज़रती उम्र यहां ।
मफ़हूम बड़े उलझे से मिले ऐ चाँद गमे बीमार न कर ।।

कुछ ख्वाब सजाकर बैठ गया फितरत ने किया मजबूर उसे ।
मासूम है दीवाने की नज़र हसरत को अभी तू ख्वार न कर ।।

          -- नवीन मणि त्रिपाठी
           मौलिक अप्रकाशित

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