तीखी कलम से

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

समंदर सूख जाना चाहता है

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तपन  को  आजमाना  चाहता  है ।
समंदर   सूख   जाना चाहता  है ।।

तमन्ना वस्ल की लेकर  फिजा  में।
कोई मुमकिन बहाना चाहता है ।।

जमीं की तिश्नगी को देखकर अब ।
यहाँ बादल  ठिकाना  चाहता है ।।

तसव्वुर  में  तेरे  मैंने  लिखी  थी।
ग़ज़ल जो गुनगुनाना चाहता है ।।

मेरी  चाहत  मिटा  दे शौक  से तू ।
तुझे   सारा   ज़माना   चाहता है ।।

मेरी फ़ुरक़त पे  है  बेचैन  सा वो  ।
मुझे  जो  भूल  जाना  चाहता  है ।।

चुभा  देता  है  ख़ंजर  पीठ  में जो ।
वही  मरहम   लगाना  चाहता  है ।।

अदब से दूर  जाता  एक  झोंका ।
कोई  आँचल  उड़ाना  चाहता है ।।

दिखा देना  हमारे  ज़ख्म  उसको ।
वो हम पर  मुस्कुराना  चाहता है ।।

हवा का रुख पलट जाने से पहले ।
वो  मेरा  घर  जलाना  चाहता   है ।।

अना  के  साथ  वो हुस्नो अदा से ।
नया  सिक्का  चलाना  चाहता  है ।।

          --  नवीन मणि त्रिपाठी 
               मौलिक अप्रकाशित

2 टिप्‍पणियां:

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