तीखी कलम से

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

ग़ज़ल - आशिकी रोज आजमाती है

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उसकी   खुशबू   तमाम  लाती है ।।
जो  हवा  घर से  उसके आती है ।।

आज मौसम है खुश गवार बहुत ।
बे  वफ़ा  तेरी   याद   आती.  है ।।

कितनी  मशहूर   हो  गई  शोहरत ।
नेक   नीयत   शबाब    लाती   है ।।

टूटकर.  मैं  भी  कशमकश  में  हूँ  ।
रात  उलझन  में  बीत   जाती  है ।।

ओढ़  लेती  बड़े   अदब  से   वो ।
जब  दुपट्टा   हवा   उड़ाती    है ।।

यूँ    तमन्ना    तमाम    क्या रक्खूँ  ।
ज़िन्दगी   रोज़   तोड़  जाती   है ।।

हम   भी  दीवानगी  से  हैं  गुजरे ।
वक्त   कैसा   हयात   लाती   है ।।

जुल्फ अपनी सियाह कर लेकिन ।
उम्र    रंगत    तेरी    बताती.   है ।।

इश्क  छिपता   नही   छिपाये   से ।
कुछ  निशानी  भी  बोल  जाती है।।

उम्र  कमसिन  जरा  सँभल के चलो।
आशिकी    रोज   आजमाती    है ।।

मत  करो   याद  इतनी  शिद्दत   से ।
आँख   से   नींद  रूठ   जाती   है ।।

          -- नवीन मणि त्रिपाठी

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