तीखी कलम से

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

ग़ज़ल - अब बुलंदी पर सितारा कीजिये

2122 2122 212 
अब  न  कोई   जंग   हारा  कीजिये ।।
अब  बुलन्दी  पर  सितारा   कीजिये ।।

चाहिए   गर    कामयाबी   इश्क़   में ।
रात   दिन   सूरत  निहारा    कीजिये ।।

चाँद  को  ला  दूं  जमी  पर आज ही ।
आप  मुझको  इक  इशारा  कीजिये ।।

बेखुदी   में  कह  दिया   होगा  कभी ।
बात  दिल   मे  मत  उतारा  कीजिये ।।

पालिये    उम्मीद   मत   सरकार  से ।
जो   मिले   उसमें  गुजारा  कीजिये ।।

ले    लिए   हैं   वोट    सारे    आपने ।
काम  भी   कुछ  तो  हमारा कीजिये ।।

अब  मुकर  जाते  हैं  अपने, देखकर ।
अब  खुदा  का  ही  सहारा  कीजिये ।।

दे   रहीं   हैं   कुछ    गवाही    झुर्रियां ।
ज़ुल्फ़   इतनी   मत  सँवारा  कीजिये ।।

गर   बुढापे   में  जवां    दिल   चाहिए ।
हुस्न  का  भी  इक   नज़ारा  कीजिये ।।

आपकी फितरत से भी वाकिफ हैं हम ।
शेखियाँ    यूँ   मत    बघारा   कीजिये ।।

हो   गया  है  इश्क़   तो  दिल  में   रहें ।
इस  तरह  तो  मत   किनारा  कीजिये ।।

         -- नवीन मणि त्रिपाठी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें