तीखी कलम से

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

ग़ज़ल -दर्द बनकर वो बहुत याद भी आया होगा

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गर शराफ़त में उसे  सर  पे बिठाया  होगा ।
ज़ुल्म उसने भी  बड़ी शान से  ढाया होगा ।।

लोग एहसान कहाँ  याद  रखे  हैं आलिम ।
दर्द बनकर  वो बहुत याद भी आया होगा ।।

हिज्र की रात के आलम का तसव्वुर है मुझे ।
आंख  से  अश्क़  तेरे  गाल पे आया होगा ।।

मुद्दतों  बाद  तलक  तीरगी  का  है  आलम ।
कोई सूरज  भी वो मगरिब में उगाया होगा ।।

कर  गया  है  वो मुहब्बत में फना की बातें ।
फिर शिकारी ने कहीं जाल बिछाया होगा ।।

कत्ल करने का हुनर सीख  लिया  है उसने ।
तीर  आंखों  से  कई  बार  चलाया.  होगा ।।

ढूढ़ मन्दिर में न मस्जिद में खुदा को  अब तू ।
वो यकीनन  तेरे  दिल मे  ही  समाया होगा ।।

कौन  कहता  है  कि वादे  से मुकर  जाता है ।
चाँद  शरमा  के  तेरी  बज्म  में  आया होगा ।।

इत्तिफाकन ही नज़र मिल गयी थी जो उनसे ।
क्या खबर थी वो मेरी जान का साया होगा ।।

मेरी  बरबाद  मुहब्बत  की  निशानी  लेकर ।
ख्वाब  उसने भी  सरेआम  जलाया  होगा ।।

क्या लिखूं आज सितमगर की जफ़ा का किस्सा ।
बाद   मरने   के   मिरे   जश्न   मनाया    होगा ।।

          -- नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित

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