तीखी कलम से

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

ग़ज़ल - है बहुत अच्छा तरीका जुल्म ढाने के लिए

2122 2122 2122 212
ढूढते   हैं   वो   बहाना    रूठ   जाने  के   लिए ।
है  बहुत  अच्छा  तरीका  ज़ुल्म  ढाने  के  लिए ।।

इक    तेरा  मासूम  चेहरा   इक   मेरी   दीवानगी ।
रह   गईं   यादें  फकत  शायद  मिटाने  के   लिए ।।

फिर  वही  क़ातिल  निगाहें  और अदायें आपकी ।
कर  रहीं  हैं  कुछ  सियासत दिल जलाने  के लिए ।।

घर मेरा  रोशन  है  अब भी आपके जाने के बाद ।
हैं  चरागे  ग़म  यहाँ   घर  जगमगाने   के   लिए ।।

चैन  से मैं सो  रहा  था  कब्र  में अपनी  तो  क्यों ।
तुम  यहाँ  भी  आ गए मुझको  सताने  के  लिए ।।

ये   समंदर   चल   पड़ा  लेने   उसे  आगोश   में ।
उठ  रहीं  लहरें  बहुत  दरिया को पाने  के  लिए ।।

शक़ की बुनियादों पे कोई ताज कायम कब रहा ।
आशिकी   होती  कहाँ   है  आजमाने  के  लिए ।।

हो  गया   कुर्बान  वो  मजबूरियों  के  नाम  पर ।
कौन  जीना  चाहता  है  मुँह  छुपाने  के  लिए ।।

इश्क़ में तू  डूब  लेकिन याद रख इतना सबक़ ।
लोग मिलते हैं यहाँ  ख़्वाहिश जताने  के लिए ।।

इस  तरह  तपती हुई प्यासी जमीं  को देखकर ।
आ रहे बादल यहाँ  कुछ  दिन बिताने के लिए ।।

बारिशों  के  दौर  में  अब   हो  गए  चेहरे   हरे ।
है  किसी  मधुमास का यौवन रिझाने के लिए ।।

               नवीन मणि त्रिपाठी

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