तीखी कलम से

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

ग़ज़ल - गुज़र रहा हूँ उसी डगर से

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है  आई   खुश्बू   तेरी  जिधर  से ।
गुज़र रहा  हूँ   उसी  डगर  से ।।

नशे का आलम न  पूछ मुझसे ।
मैं   पी   रहा हूँ  तेरी  नज़र  से ।।

हयात  मेरी  भी  कर  दे  रोशन ।
ये  इल्तिज़ा  है  मेरी  क़मर  से ।।

हजार   पलके   बिछी  हुई   हैं ।
गुज़र  रहे  हैं वो   रहगुजर  से ।।

खफा हैं वो  मुफलिसी  से  मेरी ।
जो  तौलते  थे   मुझे  गुहर  से ।।

यूँ  तोड़कर  तुम  वफ़ा  के  वादे ।
निकल  रहे  हो  मिरे  शहर  से ।।

उन्हें   पता    हैं   मेरी    खताएँ ।
वे  राज   लेते   हैं   मोतबर  से ।।

न कर तू साजिश न काट उसको ।
मिलेगा  साया  उसी  शजर  से ।।

हैं आसुओं को छुपाना मुश्किल ।
निकल पड़े   हैं जो चश्मे तर से ।।

बड़ी   उम्मीदें  थी  आज  उससे ।
मिला  कहाँ  वो  मुझे   जिगर  से ।।

         --नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित

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