तीखी कलम से

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

ग़ज़ल- दोष क्या है

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पलायन  का  वरण  तो दोष  क्या है ।
प्रगति  पर  है ग्रहण तो  दोष क्या है ।।

न अपनाओ कभी  तुम  वह  प्रशंसा।
पृथक हो अनुकरण तो दोष  क्या है ।।

जिन्हें शिक्षा मिली व्यभिचार की  ही ।
करें  सीता  हरण  तो  दोष  क्या  है ।।

मरी हो  सभ्यता  प्रतिदिन  जहां पर ।
नया हो  उद्धरण  तो दोष  क्या है ।।

अनावश्यक  अहं   की  तुष्टि से  बच ।
करेंगे   संवरण   तो   दोष   क्या  है ।।

वो  भूखों  मर  रहा  है  कौन  समझे ।
हुआ है  आहरण  तो  दोष  क्या  है ।।

जमी  घटने  लगी इस  देश  मे  अब ।
असम्भव संभरण  तो  दोष  क्या है ।।

यथा  सम्भव कहाँ  उसने किया कब ।
नहीं  हो  अंतरण  तो  दोष  क्या  है ।।

उपेक्षित  हो  गयी  जब  संस्कृति  ये ।
गलत  हो  आचरण तो दोष  क्या  है ।।

        -नवीन मणि त्रिपाठी
      मौलिक अप्रकाशित

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