तीखी कलम से

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

ज़ह्र कुछ जात का लाओ तो कोई बात बने

2122 1122 1122 22
जहर कुछ जात का लाओ तो कोई बात बने ।
आग  मजहब  से लगाओ  तो कोई बात बने ।।

देश  की  शाख़  मिटाओ  तो  कोई  बात बने ।
फ़स्ल  नफ़रत  की उगाओ तो कोई बात बने ।।

सख़्त  लहजे  में अभी  बात  न  कीजै उनसे।
मोम  पत्थर  को  बनाओ  तो कोई बात बने ।।

अब तो गद्दार  सिपाही  की  विजय पर यारों ।
याद  में  जश्न  मनाओ तो  कोई  बात   बने ।।

जात  के  नाम  अभी  तीर बहुत  तरकस में ।
अम्न को और  मिटाओ  तो कोई  बात  बने ।।

बस सियासत में अटक जाए न वो बिल वाजिब ।
शोर  संसद  में  मचाओ   तो  कोई  बात  बने ।।

इस  तरह  फर्ज  निभाने  की जरूरत क्या है ।
साथ  ता  उम्र  निभाओ  तो  कोई  बात बने ।।

रस्म  करते  हो  अदा  खूब  ज़माने  भर  की ।
हाथ दिल से जो मिलाओ तो कोई बात बने ।।

जिंदगी   कर्ज  चुकाने   में  गुज़र  जाती  है ।
चैन  कुछ  ढूढ़ के लाओ  तो कोई बात बने ।।

कर गई तुझको जो मशहूर मुक़द्दर बनकर ।
वो ग़ज़ल आज सुनाओ तो कोई बात बने ।।

घर जलाना तो बड़ी बात  नहीं  है  साहिब ।
एक घर अपना बनाओ तो कोई बात बने ।।

यूँ दिवाली के चिरागों से भला  क्या होगा ।
ज्ञान का दीप जलाओ तो  कोई बात बने ।।

          ---नवीन मणि त्रिपाठी

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