तीखी कलम से

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

ग़ज़ल - बाकी न मैं रहूँ न मेरी खूबियां रहें

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आबाद  इस  चमन में  तेरी  शेखियाँ  रहें ।
बाकी  न  मैं  रहूँ   न  मेरी  खूबियां   रहें ।।

नफ़रत की आग ले के जलाने चले हैं वे ।
उनसे  खुदा  करे  कि  बनीं  दूरियां  रहें ।।

दीमक की  तर्ह चाट  रहे आप  देश  को ।
कायम  तमाम  आपकी  वैसाखियाँ रहें ।।

बैठे  जहां  हैं  आप  वही   डाल   काटते ।
मौला नजर रखे कि बची  पसलियां रहें ।।

अंधा है लोक तन्त्र यहां कुछ भी मांगिये ।
बस शर्त वोट काटने  की  धमकियां  रहें ।।

टुकड़े वतन  के होंगे यही खाब  आपका ।
आज़ाद  है  वतन  तो चढ़ी  त्यौरियां रहें ।।

अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम।
अहले  चमन  में आपकी  गद्दारियाँ   रहें ।।

हक  छीनिये  जनाब  ये कानून  पास कर ।
काबिल की जिंदगी में तो  लाचारियाँ रहें ।।

ऊँचीथी जात जिसकी वो भूँखा मरा मिला।
कुछ  तो  तेरे  रसूक   की  दुश्वारियां   रहें ।।

कुछ  लाइलाज़  रोग  हैं  इस  संविधान  में ।
दिन  रात  कर  दुआ  कि  ये बीमारियां रहें ।।

            --नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित

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