तीखी कलम से

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

ग़ज़ल - ऐ चाँद अभी तेरा दीदार जरूरी है

221 1222 221 1222

इक  बार  तेरे  दिल  का  इकरार  जरूरी है ।
ऐ   चाँद  अभी   तेरा   दीदार   जरूरी   है ।।

माना  कि  मुहब्बत  में  हैं   ज़ख्म  बहुत  मिलते ।
कुछ सिलसिलों की खातिर कुछ ख्वार जरूरी है।।

फैशन के  जमाने  मे बदला है चलन  ऐसा ।
उनको  तो  गुलाबों  सा रुखसार जरूरी है ।।

खामोश  निगाहों  से  देखा  न करो उसको ।
दिलवर पे असर खातिर इज़हार जरूरी है ।।

महबूब की जुल्फों पर लगती है नजर उनकी ।
अब  घर  के  दरीचों  पर  दीवार  जरूरी  है ।।

आहट से मिरे  दिल मे आये सुकूं का मौसम ।
पायल में खनकती  सी झनकार  जरूरी  है ।।

हर बात में हाँ करना मतलब की है निशानी ।
सच्ची  है मुहब्बत तो  इनकार   जरूरी  है ।।

ईमान बहुत सस्ते  में बिक  गया  है  उसका ।
कीमत के  लिए  अब  तो बाज़ार ज़रूरी है ।।

       
        --नवीन मणि त्रिपाठी 
        मौलिक अप्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें