तीखी कलम से

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

किसने कहा है दर्द का मरहम नहीं है वो।

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यूँ  जिंदगी  के  वास्ते  कुछ  कम नहीं  है  वो ।
किसने  कहा  है  दर्द  का  मरहम नहीं है वो।।

सूरज  जला  दे  शान  से  ऐसा भी  नहीं  है ।
फूलों  पे  बिखरती  हुई  शबनम नहीं है वो ।।

बेचेगा पकौड़ा जो पढ़  लिख  के  चमन  में ।
हिन्दोस्तां के मान  का परचम  नहीं है वो ।।

बेखौफ  ही  लड़ता  है  गरीबी  के सितम से ।
शायद किसी अखबार में कालम नहीं है वो ।।

मेहनत  की  कमाई  में  लगा  खून  पसीना ।
अब लूटिए मत आपकी इनकम नहीं है वो ।।

तकदीर  बना लेगा वो अपने ही  करम  से ।
इंसान  की  औलाद  है  बेदम  नहीं  है वो ।।

मजबूरियों  के  नाम  पे  खामोश  बहुत  है ।
मेरे किसी भी काम से बरहम  नहीं  है  वो ।।

कोटे की सियासत से जरा बाज  अभी  आ ।
भारत की बुलन्दी का तो आगम नहीं है वो ।।

दो चार के  बदले  में  हजारों  को  मिटा  दे ।
खुलकर क़ज़ा दे सामने सक्षम नहीं  है वो ।।

नापाक है  दुश्मन तो सजा  दीजिये भरपूर ।
कायर है अभी जंग का रुस्तम नहीं  है वो।।

        --नवीन मणि त्रिपाठी

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