तीखी कलम से

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

बहती हुई खिलाफ हवावों को देखिए

221 2121 1221 212 
पत्थर  से  चोट  खाए  निशानों  को   देखिए ।
बहती   हुई   ख़िलाफ़  हवाओं  को  देखिए ।।

आबाद   हैं  वो  आज  हवाला  के  माल पर ।
कश्मीर  के  गुलाम  निज़ामों  को   देखिए ।।

टूटेगा  ख्वाब  आपका "गज़वा ए हिन्द" का ।
वक्ते  क़ज़ा  पे  आप   गुनाहों  को  देखिये ।।

गर देखने का शौक है अपने वतन को आज ।
शरहद  पे  ज़ह्र  बोते  इमामों  को   देखिए ।।

कुछ  फायदे  के  वास्ते  दहशत पनप रही ।
सत्ता  में  बैठे  आप  दलालों  को देखिए ।।

मन्दिर न बनसके न वो मस्जिद ही बन सके ।
दूकान  बन्द  मत हो  खजानों  को देखिए ।।

मजहब  नहीं  बुरा  है  सियासत  बुरी यहां ।
अमनो  सुकूँ  के  खास  इरादों को देखिए ।।

दर  दर  की  खाक  छान रहे नौजवान सब ।
हैं  पेट  के  सवाल , सवालों  को   देखिए ।।

भरपूर   टैक्स  आप   लगाते  रहें    मगर ।
थाली में क्या बचा है निवालों को देखिए ।।

मां भारती का ताज है मुस्लिम सपूत भी ।
चश्मा उतार कर के वफाओं को देखिए ।।

             नवीन मणि त्रिपाठी 
           मौलिक अप्रकाशित

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