तीखी कलम से

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

होली की पिचकारी से दोहे के तीखे रंग

मेरी  पिचकारी से दोहे के तीखे रंग -

सत्ता  से  मिल  बांट  कर, जो  घोटाला  होय ।
बाल न बांका कर सके,जग में उसका कोय।।

हाथी  सइकिल  पर लगे ,चोरी  के  आरोप ।
हिस्सा  पाकर  चुप  हुए ,हटा  रहे  वे तोप ।।

घोटालों के खेल में ,अलग अलग  है रंग ।
माल्या  मोदी  घूमते ,जनता  सारी  दंग ।।

नमो  नमो  के राज  में ,जनता  हुई  अधीर।
यहां पकौड़ा तल रहा ,भारत की तकदीर ।।

पढ़े  लिखे  का  युग  गया , मागेंगे वे भीख ।
चाय   पकौड़ा  बेचिए ,देता   कोई   सीख ।।

रोजगार  के  नाम  पर ,गहरा  है  सन्ताप ।
पाँच साल मिलता रहा,केवल लाली पाप ।।

आरक्षण के नर्क से , कौन  करे  उद्धार ।
जातिवाद की लीक से,हटी नहीं सरकार ।।

मौत  खड़ी   है  सामने ,भूखा  है  इंसान ।
मन्दिर मस्जिद का जहर, घोल रहे शैतान ।।

टूट गयी  उम्मीद  सब  ,टूट गया विश्वास ।
जी एस टी वो भी भरें ,करते जो उपवास ।।

सौ  शहरों   को   ढूढता ,बना  कौन   स्मार्ट ।
सब कुछ वैसा ही मिला, बदला केवल चार्ट।।

लिया  स्वदेशी   राग से ,कुर्सी  का  सम्मान ।
चला रहे जो धूम से,निजी करण अभियान ।।

           

          -नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-03-2017) को "जला देना इस बार..." (चर्चा अंक-2897) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-03-2017) को "जला देना इस बार..." (चर्चा अंक-2897) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    रंगों के पर्व होलीकोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं