तीखी कलम से

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

होली पर चन्द कुंडलियाँ

होली पर चन्द कुंडलियां

मधुशाला  में  भीड़  है , होली  का  उल्लास ।
बुझा  रहे  प्यासे  सभी अपनी अपनी प्यास ।।
अपनी  अपनी  प्यास  पड़े  नाली  नालों  में ।
लगा  रहे  अब   रंग  वही  सबके  गालों  में ।।
नशे बाज पर आप , लगा  कर रखना ताला ।
कभी  कभी  विषपान कराती है  मधुशाला ।।

सूखा   सूखा  चित्त  है , उलझा उलझा केश ।
होली  बैरन  सी  लगे  कंत   बसे    परदेश ।।
कंत  बसे  परदेश  बिरह  की  आग  जलाये ।
यौवन पर ऋतुराज ,किन्तु यह रास न आये ।।
कोयलिया का गान  लगे अब  बान सरीखा ।
सावरिया  के  बिना  लगे  हर मौसम सूखा ।।

अंगड़ाई    लेने   लगा , यौवन  पर  मधुमास ।
धूम मचाये कामिनी,हिय तक हुआ उजास ।।
हिय तक हुआ उजास सजन का होश उड़ाती।
मादक अँखियाँ खूब पिया को  भंग पिलाती।।
अद्भुद    है    संयोग,  खेलने    होरी    आई ।
भीगा तन  मन आज ,देख  करके  अंगड़ाई ।।

लहंगा  चुनरी में दिखा , भौजी  का  श्रृंगार ।
नैनो   से  करने   लगीं  रंगों   की  बौछार ।।
रंगों  की  बौछार   भिगाएं   अन्तस्   सारा ।
देवर  है  नादान  अभी  क्या करे  कुंवारा ।।
कहें  मणी कविराय  रंग है  काफी  महंगा ।
कहीं  पकौड़ा  बेचूं  तब  ये भीगे  लहंगा ।।

         नवीन मणि त्रिपाठी

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  2. कुंडलियां बहत दिनों बाद पढ़ीं...अच्‍छा लगा नवीन जी

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