तीखी कलम से

रविवार, 25 मार्च 2018

ग़ज़ल - फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले

2122 2122 212

आंधियों   के  बाद  भी  अक्सर मिले ।।
फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले ।।

हौसले   ने  आसमाँ  तब   छू  लिया ।
आप मुझ से जब कभी हंस कर मिले ।।

हक़ जो  मांगा  इस  ज़माने  से यहां ।
दोस्तों  के   हाथ   में  ख़ंजर   मिले ।।

लूट  की  थीं   दौलतें   जिसमें  लगीं ।
वो  मकां  अक्सर  हमें  जर्जर  मिले ।।

क्या गले मिलते भी हम तुमसे सनम ।
प्यार  के  बदले  बहुत  पत्थर मिले ।।

ऐ  खुदा  इतनी   दुआ   कर  दे अता ।
तू   हमारी    रूह    के   अंदर  मिले ।।

खुद   चले   आना   हमारी   बज़्म  में ।
वक्त जब  तुमको कभी पल भर मिले ।।

और   क्या   दें  जिंदगी   के  बाद वो ।
आप  भी  कब  मुतमइन  होकर मिले ।।

जीत    लेंगे    जंग   उम्मीदों   से  हम।
क्या   हुआ  हालात  जो  बदतर मिले ।।

जब  पता  पूँछा  किसी  से  हुस्न का ।
घर   बताते   आपका   रहबर  मिले ।।

वह  ग़ज़ल   कहने  लगी  है  इश्क़  में ।
अब तो उसकी  शायरी को पर मिले ।।

आपने   कैसे    पढ़ा   हमको   हुजूर ।
आप  भी  हमसे  कहाँ  शब भर मिले ।।

तल्खियां  इतनी   कभी  अच्छी  नहीं।
आप  मुझसे  कब  यहाँ आकर मिले ।।

शायरी   उगती  है  दिल के  खेत  में ।
क्या  करेंगे  जब  जमीं  बंजर  मिले ।।

       --नवीन मणि त्रिपाठी
       मौलिक अप्रकाशित

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