तीखी कलम से

रविवार, 25 मार्च 2018

जीना भारत मे है अब आसान कहाँ

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पहले  जैसी  चेहरों  पर  मुस्कान  कहाँ ।
बदला   जब  परिवेश  वही इंसान कहाँ ।।

लोकतन्त्र में  जात पात का  विष  पीकर।
जीना  भारत  मे  है  अब आसान  कहाँ ।।

लूट  गया  है फिर  कोई  उसकी इज्जत ।
नेताओं  का  जनता  पर  है ध्यान  कहाँ ।।

भूंख  मौत  तक  ले  आती जब इंसा को ।
बच  पाता  है उसमें  तब  ईमान   कहाँ ।।

भा जाता है जिसको पिजरे का जीवन ।
उस  तोते  के  हिस्से  में  सम्मान  कहाँ ।।

दिल की खबरें अक्सर उसको मिलती हैं 
दर्दो  गम  से  वो  मेरे  अनजान  कहाँ ।

मान   गया   होगा  वह   गैरों  की   बातें ।
उसको अब तक सच की है पहचान कहाँ ।

तोड़ दिया जब  दिल मेरा तुमने हंसकर ।
बाकी  मुझमें  अब  कोई  अरमान  कहाँ ।।

          --नवीन मणि त्रिपाठी

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