तीखी कलम से

गुरुवार, 10 मई 2018

ग़ज़ल --जल रहा है मुल्क अब मतलब परस्ती के लिए

फिर  लगाई आग किसने  एक कुर्सी के लिए ।
जल रहा है मुल्कअब मतलब परस्ती के लिए।।

जन्म ऊंची जात  में  लेना  यहाँ  अपराध   है ।
छीन  लेती  हक  यहां  सरकार गद्दी के लिए ।।

कौन करता फिक्र अब हिन्दोस्तां की शाख़ पर ।
ज़ह्र  घोला  जा रहा अपनी तरक्की के लिए ।।

नफरतों की  ईंट से दीवार  लम्बी  बन  गयी ।
खाइयां खोदी गयीं मासूम  बस्ती के  लिए ।।

खा रहे दरदर की ठोकर अक्ल वाले नौजवां।
बिक गया घर बाप का जिनकी पढाई के लिए।।

राष्ट्र  जब जीने लगे वैसाखियों  के  साथ में ।
नष्ट  हो जाता वही जो बोझ धरती के लिए।।

है कोई  अंधा  यहां  धृतराष्ट्र  सा कानून जब।
फिर  महाभारत  छिड़ेगा न्यायवादी  के लिए।।

          नवीन मणि त्रिपाठी
         मौलिक अप्रकाशित

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