तीखी कलम से

गुरुवार, 10 मई 2018

ग़ज़ल - किसने दिलों के बीच में ये ख़्वार कर दिया

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जिस रोज़ उसने  प्यार  का  इजहार  कर दिया।
इस  जिंदगी  को और भी  दुस्वार  कर  दिया ।।

चिंगारियों  से खेलने  पे कुछ  सबक  मिला ।
घर  को  जला के मैंने भी अंगार कर  दिया ।।

उठने  लगीं  हैं उंगलियां  उस  पर  हजार  बार ।
जब  उसने मुझको हुस्न का हकदार कर दिया।।

शायद   पड़ी   दरार   है  रिश्तों   की  नींव  में ।
किसने  दिलों  के  बीच  मे  ये ख्वार कर  दिया ।।

मांगी  थी  मैंने   एक  तबस्सुम   भरी   नज़र ।
शर्मा के उसने बात से  इनकार  कर   दिया ।।

जीने  का हक़ था  चैन से  जीता मैं शान  से ।
बस दिल चुरा के आपने  लाचार  कर दिया।।

यूँ  ही तड़प के रह गया मछली  की  तर्ह मैं।
जबसे निगाह से वो नया  वार  कर  दिया ।।

देखा किया मैं उम्र तलक  ख्वाब बेहिसाब।
इन  चाहतों  के दौर ने  बीमार  कर  दिया ।।

उतरा  है  चाँद  बज़्म में  देकर  मुझे  ख़बर ।
इस दिल की ख्वाहिशात को गुलज़ार कर दिया।।

छलके जो  दर्द  मेरी  जुबाँ से कभी  कभार ।
गम को मेरे तो आपने  अखबार कर दिया ।।

नीलामियों के दौर  से गुजरी  है  आशिकी ।
तुमने गरीब खाने  को बाजार  कर  दिया ।।

          --- नवीन मणि त्रिपाठी

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