तीखी कलम से

गुरुवार, 10 मई 2018

ग़ज़ल --तुझे याद हो कि न याद हो

11212 11212 11212 11212 

तेरी रहमतों पे सवाल था तुझे याद हो कि न याद हो ।
मुझे हो गया था मुगालता तुझे याद के न याद हो ।।

तेरे इश्क़ में जो करार था तुझे याद हो के न याद हो ।
जो मिला था मुझको वो फ़लसफ़ा तुझे याद हो कि न याद हो ।।

वो गुरुर था तेरे  हुस्न का जो नज़र से तेरी छलक गया ।
मेरे रास्ते  का वो फ़ासला तुझे याद हो कि न याद हो ।।

वहां दफ़्न है तेरी  याद सुन ,वो शजर भी कब से गवाह है ।
है मेरी वफ़ा का वो मकबरा तुझे याद हो कि न याद हो ।।

वो तमाम उम्र गुजार दी तेरी इक अदा की फ़िराक़ में ।
मेरे ख्वाब का था वो हौसला तुझे याद हो कि न याद हो ।।


तेरी  छत पे जो थी नजर गयी कोई रूह छू के मचल गयी ।
था नया नया सा वो सिलसिला तुझे याद हो कि न याद हो ।।

यूँ ही बेसबब थीं वो आधियाँ कई ख्वाहिशों को मिटा गयीं ।
मेरी जिंदगी का वो हादसा तुझे याद हो  कि  न याद हो ।।

         
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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