तीखी कलम से

गुरुवार, 10 मई 2018

आज़माने में बहुत लोग मुकर जाते हैं

2122-1122-1122-22

टूटकर ख्वाब  ज़माने  में बिखर  जाते   हैं ।
आज़माने  में  बहुत  लोग  मुकर  जाते  है ।।

वो जलाता ही रहा हमको बड़ी  शिद्दत से ।
हम तो सोने की तरह और निखर जाते हैं ।।

हुस्न  वालों  के  गुनाहों  पे  न पर्दा  डालो ।
क्यूँ भले  लोग यहां इश्क से डर  जाते  हैं ।।

मुन्तजिर दिल है यहां एक शिकायत लेकर ।
आप चुप चाप गली  से जो  गुज़र जाते हैं ।।

कुछ उड़ानों की तमन्ना को लिए था जिन्दा ।
क्या हुआ आपको जो पर को कतर जाते हैं।।

मत बयां कीजिये अपने भी सितम के किस्से ।
दर्द  बनकर  वो यहां  दिल  में  ठहर  जाते हैं ।

इस मुहब्बत पे है इल्जाम का साया मुमकिन ।
वो  सरे  आम  निगाहों  से  उतर  जाते  हैं ।।

उसकेआने की खबर जबभी हुई महफ़िल को ।
आहटे  हुस्न से कुछ लोग  सवंर  जाते  हैं ।।

क्यूँ छुपाते हैं मियाँ आप  मुहब्बत  अपनी ।
सबको मालूम है अब आप किधर जाते हैं ।।

        ---नवीन मणि त्रिपाठी

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