तीखी कलम से

सोमवार, 18 जून 2018

क़ानून तेरे ज़ुल्म का मैं इक निशान हूँ

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सब  कुछ  है मेरे  पास  मगर  बेजुबान  हूँ ।
क़ानून  तेरे  जुल्म  का  मैं इक  निशान हूँ ।।

क्यूँ  माँगते  समानता का हक़ यहां  जनाब ।
भारत  की  राजनीति  का मैं  संविधान  हूँ ।।

उनसे थी  कुछ उमीद मुख़ालिफ़  वही  मिले ।
जिनके लिए  मैं  वोट का ताजा  रुझान  हूँ ।।

कुनबे में आ चुका है यहाँ भुखमरी का दौर ।
क़ानून  की  निगाह  में   ऊंचा  मकान   हूँ ।।

गुंजाइशें  बढ़ीं   हैं  जमीं   पर   गिरेंगे  आप ।
जबसे   कहा  है  आपने  मैं  आसमान   हूँ ।।

सदियों  से  गन्ध  लोग  मिटाते  रहे  मेरी ।
जिनको खबर है देश का मैं ज़ाफरान हूँ ।।

हालात   पे  न  तंज अभी  कीजिये  हुजूर ।
मैं  मुश्किलों  के  दौर का तीरो कमान  हूँ ।।

सैलाब  आ  रहा है यहाँ ख़ामुशी  के  साथ ।
 मैं तो सितम की आंच  से उठता उफ़ान हूँ ।।

          --नवीन मणि त्रिपाठी

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