तीखी कलम से

सोमवार, 18 जून 2018

जाती मेरे दयार से क्यूँ तीरगी नहीं

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महताब   से  मेरी  तो  कोई   दुश्मनी  नहीं ।
जाती   मेरे    दयार   से   क्यूँ   तीरगी  नहीं ।।

मुद्दत से चैन खो गया है  नींद  तक  हराम ।
किसने कहा है आपकी सूरत  भली  नहीं ।।

कर  देगी  वो  नज़र  गुनाह  हुस्न  देखकर ।
उस पर न कर यकीं  वो अभी मजहबी नहीं।।

लेकर गयी  है  दिल  वो  मेरा मुझसे छीन के ।
जिसको कहा था प्यार के क़ाबिल अभी नहीं ।।

कमसिन अदा से उसने मुझे देख कर कहा ।
बाकी बची क्या आप में कुछ तिश्नगी नहीं ।।

यूँ  तो   नक़ाब  हट  गयी  पर्दा  हया  का है ।
देखा झुकी  निग़ाह अभी तक उठी  नहीं।।

तपती ज़मीं को रात भर बादल भिगो गया ।
फिर क्यूँ  कहा है आपने ने बारिश हुई नहीं ।।

हम तिश्नगी की बात करें भी तो क्या करें ।
अब तक हुजूर आपकी बोतल खुली नहीं ।।

जुल्फ़ो ने जब से उसको गिरफ्तार कर लिया ।
फिर कोशिशों  के बाद  ज़मानत  मिली नहीं ।।

हैं   रिन्द   बेशुमार   तेरे   मैक़दे   के   पास ।
शायद  अभी  शराब  की  कोई  कमी   नहीं ।।

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