तीखी कलम से

सोमवार, 18 जून 2018

बहुत बेचैन वो पाये गये हैं

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बहुत    बेचैन    वो    पाये    गए   हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।

चुनावों  का  अजब  मौसम  है  यारों ।
ख़ज़ाने   फिर  से  खुलवाए  गए  हैं ।।

करप्शन  पर  नहीं  ऊँगली  उठाना ।
बहुत   से   लोग  उठवाए  गये  हैं ।।

तरक्की   गांव  में   सड़कों पे देखी ।
फ़क़त  गड्ढ़े  ही भरवाए  गये  हैं ।।

पकौड़े   बेच   लेंगे   खूब   आलिम ।
नये   व्यापार   सिखलाये   गये   हैं ।।

बड़े    उद्योग    के   दावे    हुए    थे ।
मिलों   के   दाम   लगवाए   गए  हैं।।

मिली   गंगा   मुझे  रोती   हुई   फिर ।
फरेबी   जुल्म   कुछ   ढाये   गये   हैं ।।

 यकीं   सरकार  पर  जो  कर लिए थे  ।
वही  मक़तल  में अब  लाये  गए हैं।।

इलेक्शन  आ  रहा   है  सोच   लेना ।
तुम्हारे   जख्म   सहलाये    गये    हैं ।।

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