तीखी कलम से

सोमवार, 18 जून 2018

कोई शिकवा गिला नही होता

कोई  शिकवा  गिला  नहीं  होता ।
तू  अगर   बावफ़ा   नहीं   होता ।।

रंग  तुम  भी  बदल  लिए  होते ।
तो  ज़माना  ख़फ़ा  नहीं  होता ।।

आजमाकर  तू  देख  ले उसको ।
हर  कोई  रहनुमा  नहीं   होता ।।

जिंदगी  जश्न   मान   लेता   तो ।
कोई   लम्हा  बुरा  नहीं   होता ।।

कुछ तो गफ़लत हुई है फिर तुझ से।
दूर   इतना   खुदा   नहीं    होता ।।

देख  तुझको  मिला सुकूँ  मुझको ।
कैसे  कह  दूं  नफ़ा  नहीं  होता ।।

दिल जलाने की बात छुप जाती ।
गर धुंआ कुछ उठा नहीं होता ।।

गर  इशारा   ही  आप  कर  देते ।
मैं कसम  से  जुदा  नहीं  होता ।।

कुछ  शरारत थी आँख  की  तेरी ।
बेसबब  वह  फ़िदा  नहीं  होता ।।

वो मुहब्बत की  बात  करते  हैं ।
इश्क़ जिनको पता नहीं होता ।।

दर्द  इतना  है आपको  शायद ।
आप से  मशबिरा  नहीं  होता।।

आग  सीने की बुझ गयी  होती।
घर मेरा  भी  जला नही होता ।।

हाल मत पूँछ अजनबी  बनकर ।
ज़ख्म तुझसे छुपा नहीं  होता ।।

            -- नवीन मणि त्रिपाठी

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