तीखी कलम से

सोमवार, 18 जून 2018

जब मिले तब फ़ासला रखकर मिले

2122 2122 212 
लोग  कब  दिल से यहाँ  बेहतर   मिले ।
जब  मिले  तब  फ़ासला रखकर मिले ।।

है   अजब   बस्ती  अमीरों   की   यहां ।
हर  मकाँ   में   लोग  तो  बेघर   मिले ।।

तज्रिबा  मुझको  है  सापों  का  बहुत ।
डस गये जो नाग सब  झुककर  मिले ।।

कर   गए  खारिज़  मेरी  पहचान  को ।
जो  तसव्वुर  में  मुझे  शबभर  मिले ।।

मैं शराफ़त  की  डगर  पर जब  चला ।
हर  कदम  पर उम्र  भर पत्थर  मिले ।।

मौत   से   डरना   मुनासिब   है  नहीं ।
क्या पता फिर जिंदगी  बेहतर  मिले ।।

भुखमरी  के  दौर   से  गुजरे   हैं  वो ।
खेत   सारे   गाँव   के  बंजर   मिले ।।

आप  से  उम्मीद  अच्छे  दिन  की थी ।
हाथ  में  क्यों  आपके  ख़ंजर   मिले ।।

है बहुत  इल्ज़ाम  उन  पर  आपका ।
आप भी  उनसे  कहाँ  कमतर मिले ।।

सिर्फ दौलत तक नज़र  सबकी  रही ।
अब तलक भी जो हमें  रहबर  मिले ।।

जब भी माँगा पांच सालों का हिसाब ।
आपके    बदले    हुए    तेवर   मिले ।।
            --- नवीन मणि त्रिपाठी

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