तीखी कलम से

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

बीच में सारा ज़माना आ गया

2122 2122 212 
जख्म  देकर  मुस्कुराना  आ   गया ।
आपको तो दिल जलाना आ गया ।।

क़ाफिरों  की  ख़्वाहिशें  तो  देखिये ।
मस्ज़िदों  में  सर झुकाना  आ गया ।।

दे गयी बस इल्म इतना मुफ़लिसी ।
दोस्तों  को  आज़माना  आ  गया ।।

एक  आवारा  सा  बादल  देखकर ।
आज मौसम आशिक़ाना आ गया ।।

क्या  उन्हें   तन्हाइयां  डसने  लगीं ।
बा अदब  वादा निभाना आ गया ।।

नज़्म जब लिखने चली मेरी क़लम ।
याद  फिर  तेरा फ़साना आ  गया ।।

उठ  गया  पर्दा  जो  मेरे  इश्क़ से ।
बीच  में  सारा  ज़माना  आ  गया ।।

जब  मयस्सर हो  गईं रातें  सियाह ।
जुगनुओं को जगमगाना आ गया ।।

मुस्कुराता चाँद जब निकला कोई ।
गीत  मुझको  गुनगुनाना  आ गया ।।

हो  गए घायल  हजारों  दिल  यहाँ ।
वार  उसको  क़ातिलाना आ गया ।।

तिश्नगी  देती  है  कुछ  मजबूरियां ।
अब उन्हें चिलमन हटाना आ गया ।।

              --नवीन मणि त्रिपाठी

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