तीखी कलम से

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

आना मेरे दयार में मुहलत अगर मिले

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कुछ  रंजो गम  के दौर से फुर्सत अगर मिले ।
आना   मेरे   दयार  में   मुहलत अगर  मिले ।।

यूँ   हैं  तमाम  अर्जियां   मेरी  खुदा के पास ।
गुज़रे  सुकूँ  से  वक्त भी  रहमत अगर मिले ।।

आई  जुबाँ  तलक  जो  ठहरती  चली  गयी ।
कह दूँ वो दिल की बात इजाज़त अगर मिले।।

सूराख    कर   तो   देगी   तेरे आसमान   में ।
औरत को थोड़ी आज हिफाज़त अगर मिले ।।

अब  दीन  है  बचा  न  वो  ईमान  ही  बचा ।
गिर जाएगा  वो  शख्स हुकूमत अगर मिले ।।

कर  लूं  यकीन  फख्र  से  तेरी  ज़ुबान  पर ।
मुझको  तेरा  ज़मीर  सलामत  अगर  मिले ।।

ऐ   जिंदगी   मैं  तुझसे   अभी  रूबरू  नहीं ।
तुझको गले लगा लूँ मैं  मोहलत अगर मिलें।।

हँसना किसी के दर्द पे अब  सीख  लेंगे हम ।
कुछ दिन हुजूऱ आपकी सुहबत अगर मिले ।।

दिल को  सनम का हुस्न गिरफ़्तार कर गया ।
हो  जायेगा  रिहा  वो  ज़मानत  अगर  मिले ।।

पढ़  लेना  आप  खुद  ही वफाओं की दास्ताँ ।
लिक्खा  हुआ  हमारा  कोई  ख़त  अगर मिले ।।

हर  आदमी   बिकाऊ   है   बाज़ार   में   यहाँ ।
बस  शर्त   एक  है  उसे  कीमत  अगर  मिले ।।

कुर्बत - अति निकट का सम्बन्ध 

                            ---नवीन मणि त्रिपाठी 
                              मौलिक अप्रकाशित

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