तीखी कलम से

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

आपकी बात में अब रह गई वो धार कहाँ

2122 1122 1212 22
इक ज़माने से  गुलिस्ताँ  में  है बहार  कहाँ ।
जान करता है गुलों पर कोई निसार  कहाँ ।।

बारहा  पूछ   न  मुझसे   मेरी   कहानी   तू ।
अब  तुझे  मेरी  सदाक़त  पे ऐतबार कहाँ ।।

एक  मुद्दत से कज़ा का हूँ मुन्तजिर साहब ।
मौत पर मेरा अभी तक है इख़्तियार कहाँ।।

आपकी थी  ये बड़ी  भूल मान  जाते  हम ।
दिख रहे आप गुनाहों  पे  सोगवार  कहाँ ।।

ख़ाब जुमलों से दिखाया न कीजिये इतना ।
आपकी बात में अब रह गई वो धार कहाँ ।।

जीत  के जश्न में  मदहोश हो गए  जब से ।
आपके रंग का उतरा अभी  खुमार कहाँ ।।

लद गये दिन वो सियासत के इस तरह साहब ।
कारवाँ आपका निकला मग़र गुबार कहाँ ।।

दफ़्न  होती  हैं  यहाँ रोज  ख्वाहिशें  सारी ।
ढूढ़िये मत मेरी हसरत का है मज़ार कहाँ ।।

रेत  की  तर्ह  फिसलता  है वक्त  मुट्ठी से ।
अब मुहब्बत के लिए और इंतजार कहाँ ।।

लोग बेचैन हैं महफ़िल में आज फिर साकी ।
बिन तेरे बज़्म में आता यहाँ करार कहाँ ।।

अब तो क़ातिल की सजा पर हो फैसला कोई ।
जो  गिरफ्तार है जुल्फों में वो फरार कहाँ ।।

          -नवीन मणि त्रिपाठी 
          मौलिक अप्रकाशित

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